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(04-मार्च-2017) पतंजलि योगपीठ में हिन्दू हेरिटेज फाउण्डेशन के पांच दिवसीय शिविर का शुभारम्भ
पतंजलि योगपीठ में हिन्दू हेरिटेज फाउण्डेशन के पांच दिवसीय शिविर का शुभारम्भ
योग, आयुर्वेद, भारतीयऋषि संस्कृति के लिए पतंजलि में सैकड़ों विदेशी विद्यार्थियों का संगम
बसुधैवकुटुम्बकम, सह अस्तित्व एवं एकत्व भारतीय संस्कृति के तीन आदर्श – स्वामी रामदेव
सात दिव्य विभूतियाें से निभता है युवकत्व एवं छात्रत्व-आचार्य बालकृष्ण
शिविर में अमेरिका, इंग्लैंण्ड, कम्बोडिया, जापान, भूटान, नेपाल सहित 45 देशों के सैकड़ों छात्रें की सहभागिता
हरिद्वार, 04 मार्च। पतंजलि योगपीठ में सैकड़ों विदेशी छात्र-छात्रओं का पांच दिवसीय शिविर प्रारम्भ हुआ। हिन्दू हेरिटेज फाउण्डेशन के इस दल को नेतृत्व दे रहे भूटान के मिस्टर धोजी जी, नेपाल के श्री तुषार पंत, डॉ गीता शर्मा, डॉ गंगाधर जी, विश्व हिन्दू परिषद के प्रांत मंत्री श्री प्रदीप जी, आरएसएस प्रचारक श्री अनिल जी, आईआईटी रुड़की के प्रो- नरेन्द्रपुरी जी की उपस्थिति में योगऋषि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने शिविर का शुभारम्भ किया। शिविर में हिन्दू हेरिटेज फाउण्डेशन से जुडे़ अमेंरिका, इंग्लैण्ड, कम्बोडिया, जापान, भूटान, नेपाल सहित लगभग 45 देशों के 150 से अधिक छात्र-छात्रयें भागीदारी कर रहे हैं।
योग, आयुर्वेद, भारतीय ऋषि संस्कृति के मौलिक सिद्धांतों को समझने एवं भारत के साथ विश्व के विभिन्न देशों की प्राचीन विरासत में समाहित सांस्कृतिक समानताओं के अधययन एवं विश्लेषण के उद्देश्य से इस शिविर का आयोजन किया जा रहा है। पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज, श्रद्धेयआचार्य बालकृष्ण जी महाराज के सानिधय में आगामी 08 मार्च तक चलने वाले इस शिविर में प्रशिक्षकों द्वारा भारतीय योग, आयुर्वेद एवं सनातन ऋषि परम्परा एवं विरासत का शिक्षण दिया जायेगा।
इस अवसर पर पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा बसुधैवकुटुम्बकम, सह अस्तित्व एवं एकत्व भारतीय संस्कृति के तीन आधयात्मिक आदर्श हैं। जो इन्हें अपनाता है छात्रत्व व युवकत्व व योगत्व से स्वतः भर उठता हैै। तब राष्ट्रधर्म के निर्वहन संशय रहित हो जाता है।
पतंजलि योगपीठ के महामंत्री श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा छात्रधर्म, युवाधर्म व योगधर्म में विभिन्नताओं का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा विभिन्न देशों के बीच ज्ञान, कौशल, राष्ट्रगत परम्पराओं, सम्पन्नता एवं शक्तियों में अंतर हो सकता है, पर हमारी संस्कृति में सम्पूर्ण मानव समाज के एकत्व पर विश्वास किया गया है। श्रद्धेय आचार्य जी महाराज ने स्वस्थ शरीर, तीब्र मेधा, सत्य में अखण्ड निष्ठा, उत्साह, पुरुषार्थ, पराक्रम व कृतज्ञता इन सात दिव्य विभूतियाें को युवकत्व एवं छात्रत्व की आधार शिला बताते हुए कहा कि भारतीय ऋषि संस्कृति का प्राण योग अपनाने से परमात्मा प्रदत्त ये सातों विभूतियां जीवन में जाग्रत होती हैं।